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कानून बनाने बस से नहीं रुकता महिला अपराध- आंदोलनकारी
देश के लगभग हर एक हिस्से से रोजाना महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न, दुष्कर्म, हत्या और अपहरण जैसे कुकृत्यों की घटनाएं सामने आती रहती हैं। इन कुकर्मो में 18 वर्ष से कम आयु के नाबालिग तक लिप्त पाए जा रहे हैं। सामूहिक दुष्कर्म और हत्या की इन घटनाओं पर कुछ दिन तक देश में आक्रोश दिखाई देता है। कभी हम पुलिस-प्रशासन द्वारा बरती लापरवाही पर आवाज उठाते हैं, तो कभी सरकार की आलोचना करते हैं, तो कभी कानून-व्यवस्था को लेकर सवाल उठाते हैं और मजबूत कानून बनाने की वकालत करते हैं। महिलाओं के लिए कई मजबूत और अच्छे कानून बनाए भी गए हैं। यहां तक कि नाबालिग लड़की से दुष्कर्म करने पर फांसी की सजा देने का प्रावधान तक किया गया है।
फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई की व्यवस्था की गई है, ताकि पीड़िता को जल्दी न्याय मिल सके, पर अब हमें यह सोचना होगा कि क्या केवल कानून बनाकर दुष्कर्म, हत्या जैसे अमानवीय अपराधों को रोका जा सकता है। क्या इससे अच्छा यह नहीं होगा कि हम लोगों की मानसिकता को बदलने की दिशा में सोचें। हम कानून की खामियों, प्रशासन की लापरवाही एवं सरकार के रवैये पर सवाल खड़ा करते रहते हैं, पर क्या वह अपराधी कहीं और से आए हैं? नहीं, वे भी हमारे इसी समाज का हिस्सा रहे हैं।देखा जाए तो इस समस्या की जड़ हमारे समाज में बहुत गहराई तक समाई हुई है, जिसे अपने निहित स्वार्थ के लिए हम अक्सर खाद-पानी देते रहते हैं। वास्तव में कानून किसी भी समस्या का स्थायी हल नहीं होता है। हां, कानून हमें न्याय की गारंटी अवश्य देता है। यदि केवल कानून ऐसे अपराधों का सवरेत्तम हल होता, तो फिर ऐसी घटनाओं का कब का अंत हो गया होता।
जाहिर है कानून के साथ यदि समाज अपनी कमियों और गलतियों का स्वयं आकलन करे एवं बदलाव की सोच के साथ आगे बढ़े, तो अवश्य यह समस्या हल हो सकती है। इन घटनाओं के लिए हम भी कहीं-न-कहीं जिम्मेदार हैं। सवाल उठता है कि क्या हमारे स्कूल उस स्तर की नैतिक शिक्षा देने में कामयाब हो रहे हैं। यदि नहीं, तो हमें इस दिशा में गंभीरता से सोचने की जरूरत है। नई शिक्षा नीति में अवश्य बदलाव की किरण दिखती है। हम अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, वकील अवश्य बनाएं, पर मानवीय मूल्यों के साथ।समाज के प्रत्येक व्यक्ति को यह जिम्मेदारी समझनी होगी। आज के युवाओं में नैतिक मूल्यों का भारी अभाव दिखता है, इसके बारे में हमें सोचना होगा। कानून कोई जादू की छड़ी नहीं है, जो तत्काल अपराधों को रोक देगा। वह तो केवल एक माध्यम है, जिसके जरिये हम अपराध होने की दर को कुछ कम कर सकते हैं। अब समय आ गया है कि हम महिलाओं को हर प्रकार से सबल बनने में मदद करें, ताकि उनके विरुद्ध अमानवीय अपराधों पर लगाम लग सके।